PAPER ID:IJIM/V.5(VIII)/32-42/6
AUTHOR: Ritu
TITLE : महादेवी वर्मा के साहित्य में वैचारिक एवं भावात्मक चिंतन
ABSTRACT:आधुनिक युग की मीरा कही जाने वाली महादेवी वर्मा जी ने पद्य और गद्य की बागडोर को समान भाव से चलाया है। महादेवी वर्मा मूलतः वेदना की कवयित्राी हैं। इससे भिन्न आपका गद्य साहित्य तो उनकी चिंतनशील व्यक्तित्व एवं प्रगतिशील विचारधारा का धरोहर बनकर हिन्दी साहित्य जगत में अवतरित हुआ। गद्य लिखने की प्रेरणा का स्पष्टीकरण करते हुए स्वयं महादेवी जी ने लिखा है – ”मेरे सम्पूर्ण मानसिक विकास में बुद्धि प्रसूत चिंतन का भी विशेष महत्त्व है, जो जीवन की बाह्य व्यवस्थाओं के अध्ययन में गति पाता रहा है। अनेक सामाजिक रूढ़ियों में दबे हुए, निर्जीव संस्कारों का भार ढोते हुए और विविध विषमताओं में सांस लेने का भी अवकाश न पाते हुए जीवन के ज्ञान ने मेरे भाव-जगत् की वेदना गहराई और जीवन को क्रिया दी है। उसके बौद्धिक निरूपण के लिए मैंने गद्य को स्वीकार किया था।“1 आपकी रचनाओं में अपना यह संकल्प अत्यंत ओज के साथ सार्थक और चारितार्थ हुआ है। महादेवी जी को चिंतनशील व्यक्तित्व अपने संस्कारों से मिला है जहाँ उनकी सृजन की मूल प्रेरणाएँ विद्यमान रही हैं। इसलिए ही आपका सामाजिक व्यवहार बड़ा शिष्ट और शालीन बन गया। इनका गद्य साहित्य तो विधा की दृष्टि से केवल निबन्ध – रेखाचित्र एवं संस्मरण की सीमा के अन्तर्गत हैं फिर भी उनकी विचारधारा वैचारिक मान्यता, बौद्धिक चिंतन आदि कहीं-कहीं विधा सम्बन्धी सीमा का उल्लंघन करके अपनी चरम सीमा को छूती है। यही कारण है कि अपने पात्रों के चरित्रांकन में चाहे वह मानव हो या पशु-पक्षी लेखिका ने अपने जीवन तथा अनुभव को समन्वित किया है जिसे पढ़कर पाठक एकदम चिन्तामग्न बन जाते हैं। प्रस्तुत अध्याय में मैंने महादेवी जी के गद्य साहित्य में अभिव्यक्त विभिन्न विचारों पर प्रकाश डालने की कोशिश की है।
KEYWORDS: बौद्धिक चिंतन, रेखाचित्र एवं संस्मरण, उल्लंघन, चारितार्थ, प्रगतिशील, स्पष्टीकरण
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