Paper 5 -चन्द्रकांते देवताले की रचनाधर्मिता में सांस्कृतिक परिदृष्य

PAPER ID: PAPER ID:IJIM/V.5(V)/12-22/5

AUTHOR:  Dr. Ritu

TITLE : चन्द्रकांते देवताले की रचनाधर्मिता में सांस्कृतिक परिदृष्य

ABSTRACT:

समकालीन कविता के चर्चित प्रमुख हस्ताक्षर कवि चन्द्रकांत देवताले ने अपने काव्य संग्रह की कविताओं मंे भारतीय समाज की संस्कृति और उस पर पड़ने वाले पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को यथार्थ के धरातल पर चित्रित किया है। चूँकि चन्द्रकांत ग्रामीण जीवन से जुड़े कवि हैं। इन्होंने अपनी कविताओं में रीति-रिवाजों, फैले अंध-विश्वासों और धार्मिक आडम्बरों का वर्णन करने के साथ-साथ समय-समय पर आने वाले तीज-त्योहारों एवं मेलों से जुड़ी लोगों की भावनाओं का वर्णन किया है। धर्म के उच्च आदर्शों में गिरावट आने से समाज में फैली अनैतिकता और मूल्यहीनता का दृश्य दिखलाकर धर्म के ठेकेदारों द्वारा साधारण जनता को अंधविश्वासों और रूढ़ियों में फँसने की युक्ति से बचने के लिए और उनसे लूटने से बचने के प्रति सचेत करने का प्रयास किया है। अतः देवताले की कविताओं में देश की संस्कृति का वर्णन इस प्रकार झलकता है।

KEYWORDS: वेशभूषा, उत्सव, पर्व, धार्मिक विश्वास, संस्कृति स्वायत्तता

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