Paper 4- चन्द्रकांत देवताले के साहित्य में वैष्विक परिदृष्य

PAPER ID:IJIM/V.5(VIII)/18-29]4

AUTHOR: Ritu

TITLE :चन्द्रकांत देवताले के साहित्य में वैष्विक परिदृष्य

ABSTRACT: कवि चन्द्रकांत देवताले अपने समय के सजग कवि हैं। इन्होंने भारतीय समाज के सामान्य, पिछड़े और प्रताड़ित लोगों की समस्याओं तथा उनके शोषण का खुलकर विरोध किया है। परन्तु जीवन में वैश्विक समस्याएँ भी उनकी कविता में सहज रूप से उकेरी गई हैं। मानव मूल्यों का हृास, आतंकवाद की समस्या, भूमण्डलीकरण, बाज़ारीकरण आदि समस्याओं पर कवि ने विचार किया है। जो आज वैश्विक समस्याएँ बनी हुई हैं। प्रदूषण के कारण मानव बीमारियों का सामना करता है। सुबह से शाम तक हत्या और मौत की खबरें अखबारों के पन्नों पर छपी रहती हैं। सुंदर-सुंदर बगीचे उजाड़ दिए। धीरे-धीरे जमीन पर भी सीमेंट की बड़ी-बड़ी ईमारतें खड़ी हो गई हैं। प्रदूषण की समस्या, आतंकवाद, विश्वशांति-विश्वमानता की तलाश, प्रकृति संरक्षण का संकेत, बाज़ारवाद का प्रभाव आदि बिन्दुओं का व्यापकता से वर्णन किया जाएगा।

KEYWORDS: तलाष, भूमण्डलीकरण, प्रताड़ित, विष्वषांति-विष्वमानता, आतंकवाद, उकेरी

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