Paper 1 अष्टांग योग – एक योगशास्त्रीय अनुशीलन

PAPER ID:IJIM/V.7(I)/1-10/1

AUTHOR:डॉ॰ जन्मेजय

TITLE : अष्टांग योग – एक योगशास्त्रीय अनुशीलन (Ashtang yog- ek yogshastriye anushilan)

ABSTRACT:- महर्षि पतंजलि प्रणीत योग दर्शन जो कि योग सूत्र एवं पातंजल योग दर्शन नाम से विश्व-विख्यात है। योगदर्शन अर्थात् योगसूत्र हमारे जीवन दर्शन, पुरूषार्थ, ज्ञान, भक्ति, कर्म, ध्यान योग आदि योग-साधना मार्ग का दर्पण-सदृश प्रत्यक्ष दर्शन कराने का उत्कृष्ट योग-ग्रन्थ है। इसे योग की गंगा स्वरूप ही समझ कर योगांगों का श्रद्धापूर्वक नियमित और निरन्तर सांगोपान रूपी स्नान अर्थात् अभ्यास करना चाहिए। योगदर्शन में सामान्य अर्थात् सर्वसाधारण साधक (योग-श्रद्धालु) से उच्च-स्तरीय साधकों (योगभ्रष्ट) आदि जैसे (भव प्रत्यय योगियों) के लिए योग साधना का वर्णन किया है जिसमें अभ्यास-वैराग्य जैसे उच्चतम साधन उच्च साधकों के लिए एवं क्रिया-योग (तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान) मध्यम साधकों के लिये तथा अष्टांग-योग साधना पद्धति साधारण साधकों के लिए अपनी उच्चतम अवस्था प्राप्ति अर्थात् कैवल्य प्राप्ति पर्यन्त कही है; जोकि योग दर्शन का प्रतिपाद्य विषय है। योग शास्त्रों में अष्टांग को सर्वसाधारण के लिए सर्वश्रेष्ठ मानते हुए, उनके अंगों यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि का विस्तृत वर्णन किया है। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग की उपादेयता को स्पष्ट करते हुए योगांगों का लक्षण, भेद व फल सहित वर्णन किया है। इससे अष्टांग योग का व्यक्तिगत स्तर, सामाजिक स्तर, बौद्धिक स्तर और सार्वभौम स्तर पर महत्व सिद्ध होता है; जोकि योग शास्त्रों में कही गयी सर्वांगीण विकास की सर्वश्रेष्ठ साधना पद्धति है।

KEYWORDS: अष्टांग योग साधना, योगांगों का दृष्टिकोण एवं फल ।

click here to download full text

click here to download certificate

Quick Navigation